आखिर क्यूँ

बहुत अच्छा लगा आज Hospice मे Mr Michael से मिलकर ।

अपनी सहधर्मिणी की माँ यानि अपनी सास Abbey का इतना अच्छे से ध्यान रखते हुए देखकर ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था की उन्हें कही समय का कोई आभाव है और वह वहाँ अनिच्छा से बैठे है। उन्होंने बताया की उनका कर्मचारी नियुक्त और आयात निर्यात का कारोबार है। अपने परिवार और अपने व्यस्त जीवन के बारे मे बताते हुए अचानक से कंघा उठाकर Abbey के बाल बनाने लगे और फिर शीशा दिखाकर पूछा “See Mom , I didn’t let your hair mess up “Look at your nails ,I put new color on your nails” और Abbey के चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान दौड़ गयी। अपनी अंतिम सांसो से संघर्ष करती हुई Abbey बहुत तृप्त लग रही थी । अपनी बेटी के आग्रह पर वह पूरी कोशिश कर रहे थे की उसकी नानी देखने मे एक दम तैयार लगे क्यूंकि उसे बाल बिखरे अच्छे नहीं लगते थे और कभी ऐसा नहीं होता था की कभी लिपस्टिक और नेल-पोलिश ना लगी हो। मैं सोचने पर मजबूर हो गयी की मई इस भ्रम मे क्यों थी की केवल भारत मे ही परिवार के मूल्यों को समझा जाता है और बुढ़ापे को सम्मानित किया जाता है ।

“You are not spanish, right ? Mr Michael ने मुझसे पूछा। मैंने बताया की मै भारत से हूँ । और वह पूछने लगे की मै भारत मैं कहाँ से हूँ और जिस तरह से उन्होंने दिल्ली, बंगलोर ,जयपुर नाम लिए तो मुझे ऐसा लगा वह बहुत बार भारत जा चुके है। मै बहुत उत्सुक हो गयी. इतने मे वह उठे और पानी की बोतल मेरी तरफ करते हुए बोले,”आप पानी पीना है ? और मेरे मुँह से एकदम निकला ,”नहीं, Thank you ” फिर कहने लगे ,”जूस आचा हैं ,पीना है ?मैंने अपने आश्चर्य पर काबू न रखते हुए पुछा की आप ने हिंदी बोलनी कब सीखी ? बहुत हर्षित होते हुए वह हिंदी मे मुझे गिनती सुनाने लगे.” इक, दू तीह ,चार,पांच चीह ,सात,आत नू ,दस,गियारेह ,बारी” । उन्होंने कहा की व्यापर के कारण देशो -विदेशो मे आना जाना लगा रहता है । वह 2009 मे भारत गए थे और 12 दिन दिल्ली रहे थे। उन्हें भारतीय संस्कृति बहुत पसंद है. लोग बहुत प्यार से बात करते है और मददगार होते है । अपनी संस्कृति और हिंदी भाषा के लिए उनका स्नेह देखकर बहुत गर्व महसूस हुआ । मेरे चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गयी।। पर बहुत आश्चर्य और दुःख भी हुआ की जहाँ बाहर के देशो मे लोग हमारी संस्कृति का अनुसरण कर रहे है ,वहाँ हम हिंदुस्तानी खुद को अंग्रेजी स्टाइल साबित साबित करने पर गर्व महसूस करते है।

आखिर क्यूँ?