गुलाब
कुछ लिखा हुआ है जो पढ़ सुन रहा हूँ
कुछ भिखरे हुए हैं जो फूल चुन रहा हूँ
मेरे जीवन में भी कुछ बसंत और खिलते ‘गुलाब’
काव्य सृजन जीवन दर्शन होते पूरे अधूरे ख़्वाब
सोच जिज्ञासा गहरी होती होते कुछ सवाल-जवाब
‘विश्वा’ आलेख,दिग्गजों के लेख सर धुन रहा हूँ
कुछ भिखरे हुए हैं …..
देव-दर्शन क्या मैं तो आस से ही अनभिघ था
गंगा किनारे खड़ा मरुस्थल से प्यास से अनभिघ था
रास्ते में हूँ या मंज़िल छोड़ दी सफ़र से अनभिघ था
आभार हो या लाचार हो मनःस्थिति मैं चुन रहा हूँ
कुछ भिखरे हुए हैं …..
ज्वालामुखी
एक् ज्वालामुखी को अंदर से देखा है
उसकी रूह को छूकर झाँका है जैसे,
दिन में कोहरे की सफ़ेदी,
रात में लाल अंगारे
कभी दिखे ओस, तो कभी ज्वालाएँ,
था कोहरे की सफ़ेदी में लिपटा,
और थी तपती हुई सूरज की अगन,
आतिशों की अठखेलियों में डूबा
तब थी शाम की ठंडी पवन,
सृष्टि की है यह रचना
इसकी गहराई में उतरो,
कोहरे के घूँघट से
एक अंगारा ढूँढो,
और अग्नि की ताप को
ओस से ओढ़ लो,
ज्वालामुखी अंदर से शांत तभी हो
अंतर्मन की सुनकर, तुम दृढ़ निश्चय लो,
धुँधले कोहरे की गाँठ बाँध कर
ठंडी ओस की बूँद थाम कर
विश्व-लोक में कुछ ऐसा कर
उस लाल आग से तुम प्रकाश दो
आखिर क्यूँ
बहुत अच्छा लगा आज Hospice मे Mr Michael से मिलकर ।
अपनी सहधर्मिणी की माँ यानि अपनी सास Abbey का इतना अच्छे से ध्यान रखते हुए देखकर ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था की उन्हें कही समय का कोई आभाव है और वह वहाँ अनिच्छा से बैठे है। उन्होंने बताया की उनका कर्मचारी नियुक्त और आयात निर्यात का कारोबार है। अपने परिवार और अपने व्यस्त जीवन के बारे मे बताते हुए अचानक से कंघा उठाकर Abbey के बाल बनाने लगे और फिर शीशा दिखाकर पूछा “See Mom , I didn’t let your hair mess up “Look at your nails ,I put new color on your nails” और Abbey के चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान दौड़ गयी। अपनी अंतिम सांसो से संघर्ष करती हुई Abbey बहुत तृप्त लग रही थी । अपनी बेटी के आग्रह पर वह पूरी कोशिश कर Read More
पतझड़
पत्तों के रंगो मे खोई
पत्तो की बात सुनाती हूँ
आँखों ने जैसा देखा है
वैसा ही चित्र बनाती हूँ
कुछ पत्ते थे हरे अभी
ना शुरू हुई जवानी थी
कुछ पत्ते पूरे रंग मे थे
मदमाती मस्त कहानी थी
कुछ पत्ते हलके पीले थे
कुछ पत्ते गहरे पीले थे
कुछ लाल सुर्ख, कुछ केसरिया
पत्ते कितने रंगीले थे
कुछ पत्ते पेड़ों पर थे
रंगो को बिखराते थे
कुछ धरती पर गिरे हुए
जीवन की रीत निभाते थे
पत्तों के रंगो मे खोई
पत्तो की बात सुनाती हूँ
आँखों ने जैसा देखा है
वैसा ही चित्र बनाती हूँ
पत्तों को देखकर लगता था
इक इंदरधनुष अम्बर से गिर
इन पेड़ों पर छाया है
सतरंगो से बिखरा बिखरा
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