कुछ लिखा हुआ है जो पढ़ सुन रहा हूँ
कुछ भिखरे हुए हैं जो फूल चुन रहा हूँ
मेरे जीवन में भी कुछ बसंत और खिलते ‘गुलाब’
काव्य सृजन जीवन दर्शन होते पूरे अधूरे ख़्वाब
सोच जिज्ञासा गहरी होती होते कुछ सवाल-जवाब
‘विश्वा’ आलेख,दिग्गजों के लेख सर धुन रहा हूँ
कुछ भिखरे हुए हैं …..
देव-दर्शन क्या मैं तो आस से ही अनभिघ था
गंगा किनारे खड़ा मरुस्थल से प्यास से अनभिघ था
रास्ते में हूँ या मंज़िल छोड़ दी सफ़र से अनभिघ था
आभार हो या लाचार हो मनःस्थिति मैं चुन रहा हूँ
कुछ भिखरे हुए हैं …..