पतझड़

पत्तों के रंगो मे खोई
पत्तो की बात सुनाती हूँ
आँखों ने जैसा देखा है
वैसा ही चित्र बनाती हूँ

कुछ पत्ते थे हरे अभी
ना शुरू हुई जवानी थी
कुछ पत्ते पूरे रंग मे थे
मदमाती मस्त कहानी थी

कुछ पत्ते हलके पीले थे
कुछ पत्ते गहरे पीले थे
कुछ लाल सुर्ख, कुछ केसरिया
पत्ते कितने रंगीले थे

कुछ पत्ते पेड़ों पर थे
रंगो को बिखराते थे
कुछ धरती पर गिरे हुए
जीवन की रीत निभाते थे

पत्तों के रंगो मे खोई
पत्तो की बात सुनाती हूँ
आँखों ने जैसा देखा है
वैसा ही चित्र बनाती हूँ

पत्तों को देखकर लगता था
इक इंदरधनुष अम्बर से गिर
इन पेड़ों पर छाया है
सतरंगो से बिखरा बिखरा
धरती का चित्र बनाया है

या आज विधाता ने मानो
पेड़ो से खेली होली है
भर पिचकारी मारी है
यह उसकी आज ठिठोली है

या एक अजूबा माली ने
पेड़ो को फूल बनाया है
पर्वत के आँचल मे मानो
गुलदस्ता आज सजाया है

या धूप बनी है महबूबा
पेड़ो को अंग लगाती है
इक इक पत्ते को छू छू कर
पत्तो को आग लगाती है

या मेरा प्यार निकल दिल से
सतरंगी बनकर आया है
मेरे अंदर के भावों को
इन पत्तों ने अपनाया है

है प्यार का रंग या पत्तों का
यह निर्णय ना कर पाती हूँ
पत्तों के रंगों मे डूबी
पत्तों की बात सुनती हूँ

आखिर क्यूँ

बहुत अच्छा लगा आज Hospice मे Mr Michael से मिलकर ।

अपनी सहधर्मिणी की माँ यानि अपनी सास Abbey का इतना अच्छे से ध्यान रखते हुए देखकर ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था की उन्हें कही समय का कोई आभाव है और वह वहाँ अनिच्छा से बैठे है। उन्होंने बताया की उनका कर्मचारी नियुक्त और आयात निर्यात का कारोबार है। अपने परिवार और अपने व्यस्त जीवन के बारे मे बताते हुए अचानक से कंघा उठाकर Abbey के बाल बनाने लगे और फिर शीशा दिखाकर पूछा “See Mom , I didn’t let your hair mess up “Look at your nails ,I put new color on your nails” और Abbey के चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान दौड़ गयी। अपनी अंतिम सांसो से संघर्ष करती हुई Abbey बहुत तृप्त लग रही थी । अपनी बेटी के आग्रह पर वह पूरी कोशिश कर रहे थे की उसकी नानी देखने मे एक दम तैयार लगे क्यूंकि उसे बाल बिखरे अच्छे नहीं लगते थे और कभी ऐसा नहीं होता था की कभी लिपस्टिक और नेल-पोलिश ना लगी हो। मैं सोचने पर मजबूर हो गयी की मई इस भ्रम मे क्यों थी की केवल भारत मे ही परिवार के मूल्यों को समझा जाता है और बुढ़ापे को सम्मानित किया जाता है ।

“You are not spanish, right ? Mr Michael ने मुझसे पूछा। मैंने बताया की मै भारत से हूँ । और वह पूछने लगे की मै भारत मैं कहाँ से हूँ और जिस तरह से उन्होंने दिल्ली, बंगलोर ,जयपुर नाम लिए तो मुझे ऐसा लगा वह बहुत बार भारत जा चुके है। मै बहुत उत्सुक हो गयी. इतने मे वह उठे और पानी की बोतल मेरी तरफ करते हुए बोले,”आप पानी पीना है ? और मेरे मुँह से एकदम निकला ,”नहीं, Thank you ” फिर कहने लगे ,”जूस आचा हैं ,पीना है ?मैंने अपने आश्चर्य पर काबू न रखते हुए पुछा की आप ने हिंदी बोलनी कब सीखी ? बहुत हर्षित होते हुए वह हिंदी मे मुझे गिनती सुनाने लगे.” इक, दू तीह ,चार,पांच चीह ,सात,आत नू ,दस,गियारेह ,बारी” । उन्होंने कहा की व्यापर के कारण देशो -विदेशो मे आना जाना लगा रहता है । वह 2009 मे भारत गए थे और 12 दिन दिल्ली रहे थे। उन्हें भारतीय संस्कृति बहुत पसंद है. लोग बहुत प्यार से बात करते है और मददगार होते है । अपनी संस्कृति और हिंदी भाषा के लिए उनका स्नेह देखकर बहुत गर्व महसूस हुआ । मेरे चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गयी।। पर बहुत आश्चर्य और दुःख भी हुआ की जहाँ बाहर के देशो मे लोग हमारी संस्कृति का अनुसरण कर रहे है ,वहाँ हम हिंदुस्तानी खुद को अंग्रेजी स्टाइल साबित साबित करने पर गर्व महसूस करते है।

आखिर क्यूँ?

ज्वालामुखी

एक् ज्वालामुखी को अंदर से देखा है
उसकी रूह को छूकर झाँका है जैसे,
दिन में कोहरे की सफ़ेदी,
रात में लाल अंगारे
कभी दिखे ओस, तो कभी ज्वालाएँ,

था कोहरे की सफ़ेदी में लिपटा,
और थी तपती हुई सूरज की अगन,
आतिशों की अठखेलियों में डूबा
तब थी शाम की ठंडी पवन,

सृष्टि की है यह रचना
इसकी गहराई में उतरो,
कोहरे के घूँघट से
एक अंगारा ढूँढो,
और अग्नि की ताप को
ओस से ओढ़ लो,

ज्वालामुखी अंदर से शांत तभी हो
अंतर्मन की सुनकर, तुम दृढ़ निश्चय लो,
धुँधले कोहरे की गाँठ बाँध कर
ठंडी ओस की बूँद थाम कर
विश्व-लोक में कुछ ऐसा कर
उस लाल आग से तुम प्रकाश दो

गुलाब

कुछ लिखा हुआ है जो पढ़ सुन रहा हूँ
कुछ भिखरे हुए हैं जो फूल चुन रहा हूँ

मेरे जीवन में भी कुछ बसंत और खिलते ‘गुलाब’
काव्य सृजन जीवन दर्शन होते पूरे अधूरे ख़्वाब

सोच जिज्ञासा गहरी होती होते कुछ सवाल-जवाब
‘विश्वा’ आलेख,दिग्गजों के लेख सर धुन रहा हूँ
कुछ भिखरे हुए हैं …..

देव-दर्शन क्या मैं तो आस से ही अनभिघ था
गंगा किनारे खड़ा मरुस्थल से प्यास से अनभिघ था

रास्ते में हूँ या मंज़िल छोड़ दी सफ़र से अनभिघ था
आभार हो या लाचार हो मनःस्थिति मैं चुन रहा हूँ

कुछ भिखरे हुए हैं …..

अकेला

उन्हीं राहों से फिर आज मैं गुज़रा हूँ
एहसास हुआ की मैं कितना तन्हा हूँ

मेरी यादों का समन्दर तो साथ चला
क्या मैं भी उसकी याद का तिनका हूँ?

सुन चाँद मेरी परछाई को मेरे साथ चला
नहीं तो लोग कहेंगे अकेला भटका हूँ

कदमो के निशां तो मिट गये शायद
तेरी खुशबु से लेकिन आज भी मैं महका हूँ

सन्नाटे में बैठा गुरिंदर ना आज जितना
कभी पायल की छन छन को तड़पा हूँ

यादों की कसक

यादों की कसक न मिटाना ,यही तो जीने के सहारे है,
राह दिखाकर छोड़ न जाना,याद रहे की हम तुम्हारे है।

अधरों के गीत न चुराना, वह तुमसे भी प्यारे है,
पिछली रात नयनों मे आना,वह स्वप्न भी तुम्हारे है ।
बाहों के बंधन कभी न छुड़ाना ,यही जीवन नदिया किनारे है।

प्रणय सुगंध के साँसों को महकाना ,यही जीवन बसंत के नज़ारे है।
साथ साथ चलकर ही जीवन बिताना ,फिर तो हर कदम पर बहारे हैं।

मेरे चाँद कहाँ हो तुम ,अब अकेले डर लगता है ,
आकर गले लग जाओ आशा का दीया जलता है।

इन यादों का हम क्या करें जो दिल से कभी नहीं जाती हैं ,
जहाँ भी हम जातें हैं ,तुम्हारी यादें साथ जाती है।

प्रेरक उद्धरण (Quotes)

बारिश की बूँदें भले ही छोटी हों..
लेकिन उनका लगातार बरसना
बड़ी नदियों का बहाव बन जाता है…
वैसे ही हमारे छोटे छोटे प्रयास भी
जिंदगी में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं…

यदि अंधकार से लड़ने का संकल्प कोई कर लेता है!
तो एक अकेला जुगनू भी सब अंधकार हर लेता है!!

सपने वो नहीं है जो हम नींद में देखते है,
सपने वो है जो हमको नींद नहीं आने देते।

होली का त्यौहार कैसा हो

रंग बिरंगी गुलाल हो
रंगो की बहार हो

गुझिया की मिठास हो
एक बात जो सबसे ख़ास हो ,

सबके दिल मे प्यार ही प्यार हो
ऐसा अपना होली का त्यौहार हो !!!!

रंगो से भरी पिचकारी हो
हाथों मे गुलाल की थाली हो

स्नेह रंग भीगी दुनियां सारी हो
उल्लासो उमंग भरी हमारी यारी हो

एक बात जो सबसे ख़ास हो ,
सबके दिल मे प्यार ही प्यार हो
ऐसा अपना होली का त्यौहार हो !!!!

प्यार , स्नेह,समर्पण,दुलार ,मोहब्बत,सदभावना ,सदविचार
इन सात इंदरधनुषी रंगो की बौछार हो

खुशियां आँगन खेले सुबह और शाम
होली का दिन ला रहा आपके जीवन मे बहार हो

एक बात जो सबसे ख़ास हो ,
सबके दिल मे प्यार ही प्यार हो
ऐसा अपना होली का त्यौहार हो !!!!

अध्यक्षा का सन्देश

प्रिये मित्रों

मुझे यह बताने मे हार्दिक प्रसन्ता हो रही है की हमारे बीच उभरते कवियों लेखकों और कहानीकारों का मंच तैयार करते हुये हमारी प्रथम संगणकीय छपाई(Digital Print) सभी के लिए उपलब्ध है। चाहे आप उपन्यास, कविता, लिपियों उपरोक्त कुछ भी लिखते हों, यह मंच आपके श्रोताओं को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।

मुझे यह घोषणा करने में बहुत प्रसन्नता हो रही है कि इस साल का “हास्य कवि सम्मेलन “शुक्रवार ४ मई,2018 को Day’s Inn, Richfield में आयोजित किया जाएगा। मैं समारोह के लिए “फ़्लायर”(Flyer ) और “पंजीकरण फॉर्म” संलग्न कर रही हूं। कृपया अपनी प्रतियां print करके ले आएं। समारोह से पहले भोजन की व्यवस्था रहेगी और मध्य मे स्वादिष्ट नाश्ता और चाय/शीतल पेय की व्यवस्था रहेगी ।

सादर सहित
रेनू चड्डा
अध्यक्षा(अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति)
उत्तर पूर्वीय शाखा